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ट्रैन का सफर

    गरिमा अपने चचेरे भाई की शादी में जा रही है। पहले उसके पति समीर भी साथ  जाने वाले थे पर अचानक कुछ काम आ गया तो कैंसिल करना पड़ा।गरिमा रात का सफर अकेले नही करना चाह रही थी पर समीर ने  समझाया कि रिजर्वेशन है और तुम अकेली बेटी हो उस घर की ,तो जाना जरूरी है।तो उसे मानना पड़ा।बेटा सारांश भी सेमेस्टर एग्जाम के कारण नही जा सका।

      गरिमा की सामने वाली बर्थ पर एक सामान्य दिखने वाली लड़की बैठी थी।उसने गरिमा से बात करना शुरू की और बताया कि उसका नाम दीप्ति है ,इंजीनियरिंग की छात्र है और वह भी पहली बार अकेले रात का सफर कर रही है।
       ट्रैन तेजी से अपने गंतव्य की और बढ़ रही थी। गरिमा को खिड़की से बाहर अँधेरे की चादर ओढ़ती शाम नजर आ रही  थी। उसे वो समय याद आने लगा जब वह ग्यारहवीं कक्षा में थी।वो अपनी बुआ के देवर की शादी में गई थी अपने मम्मी पापा के साथ।
        90 के दशक में उन दिनों घर की बहुएं बारात में नहीजाती थी।तो बुआ और मम्मी नही गये।पर  बुआ की ननद ,ननद की बेटियां जो गरिमा की हम उम्र थी और गरिमा की प्यारी बुआ के प्यारे बच्चे जा रहे थे तो उसे  भी जाने की इजाजत मिल गई।शादी के एक दिन पहले बारात खण्डवा से भोपाल के लिये ट्रैन से रवाना हुई।ट्रैन  सही समय पर रवाना हुई।पर दो घण्टे बाद एक छोटे स्टेशन पर रुकी तो रुक ही गई।पता चला कि आगे कहीं किसी ट्रैन का एक्सीडेंट हो गया।जून की उमस भरी गर्मी से सब बेहाल थे।गरिमा को  भी पहले बेचैनी और फिर उलटी हो गई।बुआ की ननदों ने उसे ग्लूकोज़ पिलाकर आराम करने को कहा।रात के 8 बजे थे ,स्टेशन पर ट्रेन खड़े 3 घण्टे हो गए थे।छोटे से स्टेशन पर बिजली नही थी,कुछ देर बाद पता नही क्यों ट्रैन की भी लाइट बन्द हो गई।गर्मी के कारण सब लोग बोगी से बाहर उतर कर चहलकदमी कर रहे थे।
          तबियत खराब होने के कारण गरिमा ट्रैन मे लोअर बर्थ पर लेटी थी।अचानक उसे अपने पैर पर किसी का हाथ महसूस हुआ जो धीरे धीरे  उसके सीने तक पहुंच गया।वो सहम गई ,और उठ बैठीं।अँधेरे के कारण उसे एक साये के सिवा कुछ दिख नही रहा था।वो जोर से बोली कौन है,तभी किसी के आने की आहट हुई और वो साया दूर चला गया।पर वो बहुत डर गई थी।संकोच के कारण किसी से कुछ न कह सकी।
    तभी जोर से खिड़की बन्द करने की आवाज से गरिमा वर्तमान में लौट आई।दीप्ति सोने की तैयारी में थी।गरिमा से गुड नाइट बोल वह सो गई।गरिमा ने बॉटल से पानी पिया और सोने के लिये लाइट ऑफ करते हुए उसके हाथ रुक गये।
      पर ऊपर सो रहे सज्जन ने उनसे अनुरोध कर लाइट बन्द करा दी।रात के लगभग तीन बजे गरिमा की नींद खुली तो गरिमा का ध्यान गया दीप्ति बर्थ पर नही थी।शायद वाशरूम गई होगी यह सोच वह फिर से सोने ही वाली थी कि उसे कुछ अजीब सी दबी सी आवाज सुनाई दी।
        वो तुरंत सतर्क होकर उठ गई।उसने तत्परता से लाइट ऑन की और आवाज की दिशा में बढ़ गई।देखा तो दो  आदमी दीप्ति के मुंह पर कपड़ा बांधकर उस को टॉयलेट की ओर धकेल रहे थे।वो जोर से चिल्लाई और पास की सीट पर रखी बॉटल को जोर से उनकी तरफ फेंका।पकड़ ढीली हुई तो दीप्ति उन्हें धक्का दिया और गरिमा की ओर भागी।शोर से अन्य यात्री भी जाग गये, यात्रियों ने उनको पकड़ने की कोशिश की पर कोई स्टेशन आने के कारण धीमी हो रही ट्रेन से वो कूद गये।
    पांच मिनिट बाद जब अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो  लोगों ने शिकायत दर्ज कराई।बचे सफर में दीप्ति  गरिमा के पास ही  बैठी रही और सदमे में थी।उसे लग रहा था कि अगर गरिमा समय पर न आती तो न जाने की होता।अभी भी वो उन आदमियों के पास से आती शराब की दुर्गंध ,उनके कठोर और गन्दे स्पर्श को भूल नही पा रही थी।
         वहीं अन्य यात्री गरिमा की सतर्कता की चर्चा कर रहे थे।और उसकी सक्रियता के लिये उसकी प्रशंसा कर रहे थे।रात का अँधेरा अब सुबह की रौशनी में बदलने को था।आज गरिमा ने अपने 23 वर्ष पुराने डर से डटकर मुकाबला किया और विजय भी हासिल की।

                         ✍️प्रीति ताम्रकार,, जबलपुर(मप्र)

 #लेखनी कहानी

#लेखनी कहानी सफर      

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11 Comments

Babita patel

13-Jul-2023 05:46 PM

very nice

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Abhilasha Deshpande

18-Jun-2023 12:03 PM

nice

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Shalini Sharma

05-Oct-2021 03:08 PM

Nice

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